जानें- क्यों और कैसे 'गुलाबी' हुआ टेस्ट क्रिकेट
कोलकाताभारत और बांग्लादेश के बीच आज (शुक्रवार) से कोलकाता के ऐतिहासिक ईडन गार्डन्स में शुरू होने वाला टेस्ट मैच कई मायनों में खास है। यह सीरीज का दूसरा और अंतिम टेस्ट मैच है जो डे-नाइट फॉर्मेट में खेला जाएगा। भारत और बांग्लादेश, दोनों ही टीमें अपना पहला डे-नाइट टेस्ट मैच खेलने उतरेंगी जो पिंक बॉल से खेला जाएगा। देश में ऐसा पहली बार है कि कोई टेस्ट मैच पिंक बॉल से डे-नाइट फॉर्मेट में होगा। मैच दिन में 1 बजे शुरू होकर रात तक खेला जाएगा। कैसा आया था ख्यालडे-नाइट टेस्ट मैचों के आयोजन का मकसद टेस्ट क्रिकेट को नया कलेवर और ज्यादा दर्शक देना था। इससे जो क्रिकेट फैंस और आम लोग मैच देखना चाहते हैं, वे दिन में अपना काम खत्म कर भी स्टेडियम आ सकते हैं। टेस्ट मैच में कम दर्शक होने का मुद्दा विराट कोहली भी उठा चुके हैं। पढ़ें, पहली बार 2010 में पिंक बॉल मैचपिंक बॉल से पहली बार फर्स्ट क्लास मैच साल 2010 में खेला गया था। 15 से 18 जनवरी तक त्रिनिदाद ऐंड टॉबेगो और गयाना के बीच नॉर्थ साउंड में खेला गया यह मैच ड्रॉ रहा था। 2012 में आईसीसी सहमत 30 अक्टूबर 2012 को आईसीसी ने लाइट्स में टेस्ट क्रिकेट के आयोजन को लेकर हरी झंडी दिखाई। हरकत में एमसीसी साल 2006 में एमसीसी ने कूकाबूरा (गेंद बनाने वाली कंपनी) से संपर्क किया जो ऐसी गेंद बनाए जिससे डे-नाइट टेस्ट मैच खेले जा सकें। ऑस्ट्रेलियाई कंपनी ऐक्शन मोड में आई और एक अच्छी पिंक बॉल बनाई। पिंक ही क्योंपीले और ऑरेंज रंग की गेंदों के साथ कई तरह के ट्रायल और जांच के बाद पाया गया कि इसमें काफी कमियां हैं। इतना ही नहीं, टीवी कैमरा भी इस तरह के रंग की गेंदों को अच्छे से दिखा नहीं सके। फिर फैसला किया गया कि पिंक बॉल का ही इस्तेमाल किया जाएगा। पढ़ें, कैसे बनती है गेंदगुलाबी गेंदें शुरुआत से लेकर अंतिम चरण तक हाथ से ही तैयार की जाती हैं जिसमें कॉर्क, रबर और सिलाई के लिए ऊनी धागे का इस्तेमाल होता है। इसमें किसी तरह की कोई मशीन की मदद नहीं ली जाती और ना ही इसे ग्रीस में डुबाया जाता है। गुलाबी रंग का चमड़ा तैयार करने में ही 10 दिन लग जाते हैं। इसके बाद लाल गेंद की तर्ज पर ही यह गुलाबी गेंद भी तैयार की जाती है। भारत में एसजी कंपनी की गेंदभारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) ने इस टेस्ट मैच के लिए एसजी कंपनी की पिंक बॉल को चुना है। जो दलीप ट्रोफी मैच भारत में पिंक बॉल से खेले गए थे, उनमें कूकाबूरा गेंदों का इस्तेमाल किया गया था। पहली बार एसजी कंपनी की पिंक बॉल टेस्ट मैच में इस्तेमाल की जाएगी। पहला डे-नाइट टेस्ट मैच कबदुनिया का पहला डे-नाइट टेस्ट मैच ऑस्ट्रेलिया और न्यू जीलैंड की टीम ने एडिलेड ओवल में (27 नवंबर-01 दिसंबर) खेला गया था। इसे ऑस्ट्रेलिया ने 3 विकेट से जीता था। मैच में तेज गेंदबाजों का दबदबा देखने को मिला। बदल जाएगा खेल के सेशन का ब्रेक टाइमपारंपरिक टेस्ट मैच की तरह डे-नाइट टेस्ट में भी प्रतिदिन 3 सत्र का ही खेल खेला जाएगा। इस टेस्ट में पहले सेशन के बाद चायकाल होगा। यानी दो घंटे के पहले सत्र के बाद चाय के लिए 20 मिनट का ब्रेक होगा फिर अगले दो घंटे के खेल के बाद डिनर (रात्रि भोजन) के लिए 40 मिनट के ब्रेक की घोषणा होगी। इसके बाद अगले 2 घंटे अंतिम सेशन का खेल होगा। पढ़ें, पेसरों का दबदबाडे-नाइट टेस्ट में अब तक फास्ट बोलर्स का दबदबा साफ देखने को मिला है। 11 टेस्ट मैच में फास्ट बोलर ने इसमें 25 के औसत से 257 विकेट अपने नाम किए हैं। वहीं स्पिनर्स ने 31 के औसत से सिर्फ 91 विकेट ही अपने नाम किए हैं। स्विंग पर नजरपिंक बॉल शुरुआती 10 से 15 ओवर में काफी स्विंग करती है। इस लिहाज से तेज गेंदबाजों को काफी फायदा मिल सकता है लेकिन इसके बाद जब सीम थोड़ा सॉफ्ट होने लगता है तब बल्लेबाज आसानी से इसे खेल पाते हैं। इन देशों ने खेला पिंक बॉल से टेस्टऑस्ट्रेलिया, न्यू जीलैंड, इंग्लैंड, साउथ अफ्रीका, वेस्ट इंडीज, पाकिस्तान, श्रीलंका और जिम्बाब्वे पहले ही पिंक बॉल से टेस्ट मैच खेल चुके हैं। अब इसमें भारत और बांग्लादेश का नाम भी जुड़ जाएगा।
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