घरेलू स्तर पर दिग्गज लेकिन टीम इंडिया में नो चांस
नई दिल्ली फर्स्ट क्लास क्रिकेट में अपने जमाने के दिग्गज स्पिनर राजिंदर गोयल () का बीते रविवार को निधन हो गया। वह 77 साल के थे और उम्र संबंधी बीमारियों से पीड़ित थे। गोयल की मृत्यु की खबर सुनकर एक बार फिर उनके उस सुनहरे दौर की यादें ताजा हो गईं, जब प्रथम श्रेणी क्रिकेट में उनके नाम का खूब डंका बजता था। हरियाणा के लिए खेलने वाले गोयल ऐसे खिलाड़ी थे, जिन्होंने नेहरू युग से अपना खेल शुरू किया और राजीव गांधी के समय तक खेले। लेकिन 750 विकेट चटकाने वाले इस खिलाड़ी को कभी टीम इंडिया में खेलने का मौका नहीं मिला। गोयल इसलिए भी अनलकी रहे कि उन्होंने अपना अधिकतर क्रिकेट बिशन सिंह बेदी के दौर में खेला। ऐसे कई क्रिकेटर्स, जो घरेलू क्रिकेट के हीरो लेकिन टीम इंडिया में नहीं मिला मौका राजेंद्र गोयल के अलावा घरेलू क्रिकेट में ऐसे कई दिग्गज खिलाड़ी रहे, जिन्होंने प्रथम श्रेणी और लिस्ट A स्तर पर तो खूब धमाल मचाया। लेकिन भारत के लिए उन्हें कभी इंटरनैशनल क्रिकेट में खेलने का मौका नहीं मिला। हमने इस मौके पर ऐसी 'अनलकी XI' तैयार की है। बीबी निम्बाल्कर (विकेटकीपर), महाराष्ट्रवह एक मजबूत विकेटकीपर बल्लेबाज थे। निंबालकर ने 1948-49 में महाराष्ट्र की ओर से खेलते हुए काठियावाड़ के खिलाफ 443 रनों की पारी खेली। यह प्रथम-श्रेणी क्रिकेट में किसी भारतीय द्वारा बनाया गया सर्वोच्च स्कोर है। उनके विकेटकीपिंग स्किल भी अच्छे थे। उन्होंने अपना प्रथम-श्रेणी करियर 47.9 के औसत पर समाप्त किया। पांडुरंग सलगांवकर, महाराष्ट्र 1970 के दशक में उन्हें एक प्रतिभाशाली तेज गेंदबाज के रूप में देखा जाता है। 1974 में वह इंग्लैंड के लिए चुने जाने के काफी करीब पहुंच गए थे। उन्होंने प्रथम-श्रेणी क्रिकेट में 26.7 के औसत से 214 विकेट लिए। वी. शिवारामाकृष्णन, तमिलनाडु और बिहार बाएं हाथ ने इस बल्लेबाज ने घरेलू क्रिकेट में तमिलनाडु और बिहार का प्रतिनिधित्व किया। उनके पास भारतीय टीम में खेलने की तकनीक और संयम मौजूद था। वह फर्स्ट क्लास क्रिकेट में 6000 से ज्यादा रन बनाने के बावजूद चयनकर्ताओं को प्रभावित नहीं कर पाए। इसके साथ ही वह बहुत अच्छे करीबी फील्डर भी थे। पालवंकर बालू बालू भारत में टेस्ट क्रिकेट की शुरुआत से पहले के खिलाड़ी थे। लेकिन बाएं हाथ के इस स्लो गेंदबाज ने 1911 के टॉप के इंग्लैंड दौरे पर शानदार प्रदर्शन किया। वह दलित समाज से आते थे और उन्होंने 1937 में डॉक्टर बीआर अंबेडकर के खिलाफ बॉम्बे म्युनिसिपल इलेक्शन में चुनाव भी लड़ा, जिसमें उन्हें हार का सामना करना पड़ा। केपी भास्कर, दिल्लीये उन क्रिकेटर्स में से हैं जिन्होंने 50 के ज्यादा के औसत से रन बनाए। दिल्ली के इस बल्लेबाज ने 52.80 के औसत से 5443 रन बनाए। ऐसी संभावना थी कि 90 के दशक में वह भारत के लिए खेल जाते लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। एमवी श्रीधर, हैदराबाद हैदराबाद के इस पूर्व बल्लेबाज के पास कम्पोजर था और कलात्मकता भी। इस राइटहैंडर के पास कुल मिलाकर भारत के लिए खेलने की सभी खूबियां मौजूद थीं। उन्होंने प्रथम श्रेणी में 21 शतक लगाए। इसमें आंध्र प्रदेश के खिलाफ लगाए गए 366 रन भी शामिल थे। प्रथम श्रेणी में उनकी औसत रही 48.9। देवेंद्र बुंदेला, मध्य प्रदेशमध्य प्रदेश के इस भरोसेमंद बल्लेबाज ने 2017 में अपना प्रथम श्रेणी करियर समाप्त किया। उन्होंने 10,004 रन बनाए और 58 विकेट भी लिए। हरि गिडवानी, बिहार और दिल्ली गिडवानी ने घरेलू क्रिकेट में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। बिहार और दिल्ली के लिए खेलते हुए लगातार रन बनाए। उन्होंने 1970 के दशक में भारत आने वाली विदेशी टीमों के सर्वश्रेष्ठ गेंजबाजी आक्रमण के खिलाफ अच्छी बल्लेबाजी की। इसके साथ अपनी लेग ब्रेक गेंदबाजी से उन्होंने 135 विकेट भी झटके। अमोल मजूमदार, मुंबई (कप्तान) इस 'अनलकी XI' के कप्तान तो अमोल मजूमदार को होना चाहिए। जब मजूमदार ने 1994-95 में खेले तो उन्होंने अपने पहले रणजी मैच में ही 264 रनों की पारी खेली दी। इसके बाद यह चर्चा आम हो गई कि वह जल्द ही भारत के लिए खेलेंगे। हालांकि ऐसा हो नहीं सका। 48.1 के औसत से 11667 रन बनाने के बाद भी उन्हें भारत के लिए खेलने का मौका कभी नहीं मिला। रानादेव बोस, पश्चिम बंगालबंगाल के इस ऊंचे कद के मीडियम पेसर ने सही लाइन-लेंथ पर गेंदबाजी करने की अपनी खूबी के कारण घरेलू क्रिकेट के बेस्ट बल्लेबाजों को परेशान किया। उन्होंने घरेलू क्रिकेट में 25.8 के औसत से 317 विकेट लिए जो उनकी काबिलियत को दिखाता है। उन्हें 2007 में इंग्लैंड के दौरे पर चुना गया लेकिन बिना खेले ही लौट आए। सितांशु कोटक, सौराष्ट्र 1992-93 में शुरू हुआ यह फर्स्ट क्लास करियर करीब 20 साल तक चला। कोटक ने सौराष्ट्र की बल्लेबाजी क्रम में अहम भूमिका निभाई। उन्होने अपने प्रथम श्रेणी क्रिकेट में 8061 रन बनाए और कुल 70 विकेट लिए। कोच के रूप में उन्होंने सौराष्ट्र को घरेलू क्रिकेट में बड़ी ताकत बनाने में भी उन्होंने बहुत मेहनत की।
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